जाएँ तो जाएँ कहाँ ?



द्वारा: विनीत

पलायन की मार झेलते मजदूर शहरों में किस तरह व्यवस्था के अभिजात्यिता का शिकार होकर जीवन की बुनियादी सुविधाओं को भी तरसते हैं ।
दुश्वंत कुमार के शब्दों में
"कहाँ तो तय था की चिरागां हर एक घर के लिए
यहाँ दीया मयस्सर नहीं शहर के लिए
"
शेहरी ग़रीबों के जीवन के दर्द को समेटते हुए इस आलेख को पढ़ने के लिए यहाँ दबाएँ।

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April 2008

April  2008
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