हमारे दिना भदरी - भाग २

-ज़हीब (फ़िलहाल एक शोध जो की प्रवासी मजदूर की ज़िन्दगी को समझने की कोशिश है उसमे एक शोध सहायक का काम कर रहे है|)



वहीँ से शुरू कर रहा हूँ जहा से छोड़ा था. मेरे सवाल का जवाब अभी तक नहीं मिला, खैर कहते है न देर है अंधेर नहीं. मुझे एक और घनिष्ट ऋषिदेव साथी के साथ वक़्त बिताने का मौका मिला और बात करते-करते मैंने बात दिना-भदरी के तरफ मोड़ दी तो इन्होने कुछ गोल-मोल सा बताया. इन साहब ने जिनकी उम्र लगभग 50 से 55 की होगी बताया की दिना भदरी की पूजा यहाँ तो हर कोई करता है, चाहे वो हिन्दू हो, सिख हो या मुसलमान ही क्यों न हो. सब के भगवान है दिना-भदरी और सब का भला करते हैं. गरीब को जमींदार से बचाते थे और उनके लिए लड़ते थे, अरे उनको तो छल से मार दिया सब नहीं तो इनका तो कोई बाल भी बांका नहीं कर सकता, इतने बलवान थे की क्या बतायें. मैंने हिम्मत करके आखिर पूछ ही लिया कि ये दोनों कौन थे और क्या करते थे ? उन्होंने एक बात कही कि देखिये ऐसे पता नहीं चलेगा इनके बारे में, आप हमारे सम्मलेन में आइये जो तीन महीने तक चलता है. सबकुछ सुनियेगा और देखियेगा तो ज्यादा अच्छा रहेगा न.




यहाँ भी निराशा ही मिली, मुझे यहाँ आये 20 दिन हुआ है शायद गाँव में लोग अभी भी मुझे जांच रहे है की आखिर मैं हूँ कौन ? गलत और सही की बहस छोड़ दें तो मुझे इनका स्वभाव कहीं से भी प्रश्नीय नहीं लगा. अब मैंने सोचा क्यों न अपने सीनियर से पूछूँ जिनका मैं सहायक बन कर आया हूँ. शायद वो कुछ मार्गदर्शन कर सकें. मेरे सीनियर ने मुझे बताया की जब वो कुछ साल पहले इस गाँव में आय थे तो उन्होंने प्लास्टर के ईंट वाली संरचना देखा था जिसमें दो बांस गड़े हुए थे. मैंने उन्हें बीच में टोका, जैसे आप मुझे टोकना चाहते है, की तीन बांस थे दो कैसे हो गए. मैंने उनसे बोला की सरजी यहाँ दो नहीं तीन बांस है, तो उन्होंने चौंकते हुए बोला तीसरा कौन है, ज़रा पता लगाओ, मैं ये जानता हूँ की ये दोनों भाई जात से राजपूत थे और दोनों जमींदारों के खिलाफ गरीबो के लिए लड़ा करते थे, और कहा जाता है कि इनकों छल से मारा गया था. नेपाल के करीब एक गाँव में इन्हें किसी यादव के द्वारा दफनाया गया था. मेरे सीनियर ने मुझे सलाह दी कि मुझे इस के बारे में और पता करना चाहिए और जानने की कोशिश करनी चाहिए, साथ ही मुझे इसका भी ख्याल रखना चाहिए की किसी को मेरी किसी बात से दुःख नही होना चाहिए क्योंकि ये धर्मं का मसला है. मैं भी कोई भी सवाल अधुरा नहीं छोडूंगा.

दिना भदरी की पुजा, क्यूँ ?

अब इस बार मैंने दुसरे टोले में जाना शुरू क्या और पता नहीं कैसे मेरे रिश्ते बहुत जल्दी ऋषिदेव दोस्तों के मुकाबले और भी ज्यादा मधुर और घनिष्ट हो गए. एक दिन बात करते करते मैंने पूछा की भैया जरा बताइए न दिना भदरी के बारे में, बहुत सुना है उनके बारे में. वो बिना हिचकिचाए बोलने लगे, उन्होंने पहले वही सब बात दोहराई जो पहले लोग बता चुके थे.

इन्होंने बताया की आखिर दिना भदरी की मान्यता क्यों बढ़ी, वो बोले,  देखिये भैया हमलोग ठहरे गरीब लोग, हमारी मदद कौन करता है. लेकिन करीब 100 से 200 साल पहले की बात है एक बड़ा जमींदार था,  बड़ा जमींदार था तो ज्यादा लोग काम करते थे. जिसमें से ज़्यादातर गरीब और गरीब भी ऐसे जिनके पास खाने को पैसा नहीं है, पहनने को कपड़ा नहीं है. एक बार क्या हुआ कि कुछ लोग जिनको काफी दिनों से पैसा नहीं मिला था, उनमे से कुछ लोगो ने काफी हिम्मत करने के बाद जमींदार के खेत से कुछ फसल काट लिया. जमींदार के कुछ लोगो ने यह देख लिया और उनको पकड़ लिया गया. जमींदार इन पर चिल्ला रहा था और इनसे कह रहा था की जो फसल तुम लोग यहाँ से ले गए हो उसका जुर्माना भरना पड़ेगा नहीं तो अभी तुमलोग को हम पुलिस के हवाले करते है. मजदूर सब के सामने विनती करते हुए, माफ़ी की गुहार लगाने लगे. लेकिन जमींदार टस से मस होने को तैयार नहीं था. उसी वक़्त दिना और भदरी दोनों भाई वहाँ गुज़र रहे थे.



आप सोच रहे होंगे इतनी अच्छी कथा चल रही, पूर्ण विराम क्यूँ लगा दिया. लेकिन आगे बढ़ने से पहले आपलोग का इन दो राजपुत भाइयो का के बारे में जानना ज़रूरी है. जैसा की लोग बताते है की दिना बड़ा भाई था और भदरी छोटा था, इसके साथ एक और बात भी बताते है की इन दोनों भाइयों में से दिना शांत स्वभाव का था और भदरी थोड़ा गुस्से वाला था. आगे उन्होनें बताया कि ये दोनों, जमींदार के पास पहुंचे और लेकिन वहाँ पहुचने से पहले इन दोनों ने साधू का भेष धारण कर लिया था. जमींदार के पास पहुँच कर दिना ने घटना के बारे में पूर्ण जानकारी ली और जमींदार को समझाने की कोशिश की. जमींदार के खेत से थोड़ा फसल लेने को भूल कर माफ़ी कि बात को जमींदार मानने को तैयार नहीं था. भदरी को गुस्सा आया तो दिना ने शांत रहने को कहा लेकिन काफी कोशिशों के बाद भी जब जमींदार नहीं माना तो भदरी ने उसकी गर्दन पकड़ कर मोड़ दी. जमींदार की उसी क्षण  मृत्यु हो गयी. जमींदार की राजनैतिक पहुँच मजबूत थी और उसकी मृत्यु से गाँव में हाहाकार मच गया और मजदूरों पर जमींदार के बेटे ने केस दर्ज कर दिया. इन लोगों को वकील ने बताया की कोर्ट में अगर एक लाख रुपया जमा करोगे तो केस रद्द हो सकता है. इन मजदूरों को कुछ समझ नहीं आया की आखिर इतना पैसा कहाँ  से लाया जाय. चंदे और घर के सामान बेचने के बाद भी 20 से 25 हज़ार रुपया ही जमा हो पाया. इन लोगों ने तय किया की कोर्ट ही चलते हैं जो होगा देखा जायेगा. जब ये लोग कोर्ट पहुचे तो इनके वकील ने कहा की तुमलोग यहाँ क्या कर रहे हो ? उन्होंने बताया कि जितना पैसा जमा हुआ है वही जमा करने आये हैं. वकील ने बताया कि तुमलोग घर जाओ, अभी दो साधू आये थे और एक लाख रुपया दे कर के चले गए. ये लोग अचंभित हो गए कि ये बाबा कौन है ? पीछा करने की कोशिश की गयी तो वो लोग अचानक गायब हो गए. वो ऐसे ही कभी साधू के भेष में तो कभी तपस्वी के भेष में नज़र आते थे. कहते है जैसे आपके लिए (यहाँ उन्होंने स्पष्ट नहीं किया की आपके लिए से उनका सन्दर्भ क्या है ? ) राम-लखन हैं वैसे हमारे लिए दिना-भदरी हैं. आगे बोलते हुए उन्होंने बताया की भैया ऐसी कई सारी कथाएं और घटनाएँ है. आप आइयेगा न जनवरी में तब न अच्छे से खान-पान होगा. पूछने पर उन्होंने बताया कि ‘अच्छा खान-पान’ से मतलब है कि दिना-भदरी सम्मलेन के वक़्त मांस मछली बनेगा. रहते तो खाते. हम बोले आप खबर कर दीजयेगा हम ज़रूर आयेंगे. यहाँ पर यह अंश खत्म कर रहा हूँ. अगले अंश में आपको बताऊंगा कि कैसे, कहाँ और क्या होता है सम्मलेन और क्या मतलब है तीसरे बांस का !

(नोट: यह लेख बिना Dr. Indrajit Roy और Economic and Social Research Council (ESRC) के सहयोग के बिना मुमकिन न हो पता, इनके इस सहयोग का मैं बहुत आभारी हूँ|)

1 comment:

Unknown said...

Aagla interesting hoga

April 2008

April  2008
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